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शुक्रवार, 18 मार्च 2016

पेन्सिल


नमस्कार ! आज मैं हम सभी के बचपन की  उस प्यारी पेन्सिल के बारे बात करना चाहती हूँ। बचपन के दिनों में पढाई के वक्त हम सभी ने  ये पेन्सिल नामक यन्त्र का इस्तेमाल किया होगा। उससे हजारों गलतियां भी की होंगी और उसके बेस्ट मित्र रबड़ ने  उन गलतियों को मिटाने में हमारी  मदद भी की होगी। ऐसा हमने न जाने कितनी बार किया होगा।  कभी अक्षरों को दुरुस्त किया होगा, तो कभी टेड़े- मेढे  लेटरों को ठीक किया होगा और आर्ट के पेपरों में न जाने कितने गिलास ,कप ,पतंग और लोगो के चेहरे को बनाया होगा। जहाँ -तहाँ दीवालों पर भी चित्रकारी का प्रदर्शन किया होगा। आपने  भी किया है न ! मैं जानती हूँ।  क्यों याद आया ना ? आपकी होठों  की मुस्कुराहट इस बात का सबूत  है। 

उस पेन्सिल की याद आते ही एक सुखद अनुभूति होती है। क्या दिन थे वो भी ? कितना लगाव हुआ करता था उस मुट्ठी भर के पेन्सिल से। न जाने क्यों, हम उसे फेंकना नहीं चाहते थे। माँ बोलती थी, टीचर डांटते थे कि छोटी पेन्सिल से मत लिखो। मगर मन में उस पेन्सिल से इतना प्रेम क्यों था ? मुझे समझ नहीं आता था। एक उम्र का दौर बीत जाने के बाद आज समझ में आता है कि हमें हमारी उस पेन्सिल से इतना प्रेम क्यों था ? वो हमारी बचपन की तरह ही मासूम था। जिससे लाख गलतियां कर जाने के बाद भी दोबारा मिटा कर सही किया जा सकता था। जैसे लोग छोटे बच्चे की नासमझी भरी बातों को भुला देते हैं। गलती कैसी भी हो और उनको माफ़ कर देतें हैं।

क्या कभी आपने इस बारे में कभी विचार किया है कि पेन्सिल छोटे होने पर ही हमें लिखने को क्यों दी जाती है ? बच्चा जैसे-जैसे समझदार होने लगता है, तो उसे नींब-पेन  या फिर बाल-पेन से लिखने को  दिया जाता है।ऐसा करने के पीछे भाव  यह है कि छोटे बच्चे की गलतियों को भुलाई जा सकती है और थोड़े बड़े हो जाने पर नींब-पेन के प्रयोग के पीछे ये भाव है कि  गलतियों  को करके मिटा तो लोगे मगर अपना प्रभाव सामने  वाले पर छोड़ जाओगे। और जब हम समझदार हो जातें है, तो हमें बाल-पेन दी जाती है, जिसकी लिखावट मिटाने में बहुत मुश्किलें आती हैं। जो बताती है कि बेटा अब आप बड़े हो गए तो आपकी गलतियों का अधिकार अब समाप्त हो गया है। अब अगर आप गलती करोगे तो उसे अब मिटाया नहीं  जा सकता  है।  अब जीवन में  गलतियों का कोई स्थान नहीं है। गलतियाँ करने  से वो स्थान ख़राब हो जायेगा। जो  हमेशा के लिए क्रॉस का निशान बना देगा। 

मैं जब कभी  पेन का लिखने प्रयोग  करती हूँ ,तो मुझे  अपनी बचपन की पेन्सिल की बहुत याद आती है ,जो कितनी निश्छल थी।  जो हमारे गलतियों को माफ़ कर हमें दोबारा उसे सही करने का अवसर देती थी। हम अब चाह  कर भी  उसे फिर से हासिल नहीं कर सकते हैं , क्योंकि हम सब अब बड़े हो चुके हैं ,समझदार हो गए है , हमारे सोच के दायरे बहुत विस्तृत हो गए हैं। अब हम बच्चे नहीं रहे। जो हम उस पेन्सिल से गलतियां करके मिटाते  रहें। हमें अब उन गलतियों को मिटाकर सुधारने का अवसर मिलने का समय ख़त्म हो गया। अब सुधरने के लिए पेन्सिल पकड़ने योग्य हमें किसी और को बनना है।ये हमारा फर्ज है कि हम छोटो को सही मार्ग -दर्शन दें और समाज का एक सभ्य शिक्षित नागरिक बनने में उनकी मदद करें । आज के लिए इतना ही। 

Image-Google

8 टिप्‍पणियां:

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    1. आपके विचार मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं ,मेरी लेखनी आप सभी को पसंद आ रही है,जानकर खुशी हुई .लिंक के लिए धन्यवाद..

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