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शुक्रवार, 25 मार्च 2016

सकारात्मक सोच

Sakaratmak Soch in Hindi

आजकल जहाँ कही भी देखिये, लोगों में एक बात सबसे कॉमन  रूप से देखने को मिल जाती है और वो है कि -- दूसरों में दोष निकालना। चाहे वह व्यक्ति किसी भी उम्र का क्यों न हो, दूसरों पर  दोषारोपण करने की आदत सभी की हो गई है। हमें दूसरों में दोष ही दिखाई देता है और उनकी कमी का पता चलते ही हम उसका मजाक बनाने से भी नहीं चूकते हैं। ऐसी भावना  हमारे मन में क्यों आती है ? क्या कोई व्यक्ति सर्वगुणसम्पन्न  होता है ? सभी में एक न एक कमी अवश्य ही होती है। 

जब किसी बच्चे का जन्म होता है, तो वह सिर्फ खाना ,रोना और नित्य कर्म को ही  जानता है। मगर दुनिया में आँख खोलने के बाद माता -पिता और समाज की सहायता के द्वारा ही जीवन जीने के गुणों और व्यवहारों को सीखता है। फिर हम किसी व्यक्ति का  दोषारोपण  कैसे करे सकते है, जिसको हमने खुद ही साँचे में ढाल  कर निकाला है। अगर किसी में कोई दोष है, तो उस पर हँसने वालों की कोई कमी नहीं है। और जिसका मजाक बनाया जाता है, उसके मन पर क्या बीतती है इसके बारे में कोई सोचता तक नहीं है। अगर हम एक बार खुद के अंदर झांक कर देखते हैं तो क्या हमारा दिल हमें सबसे बेस्ट मनाता है ? ये जवाब हम खुद से नहीं पूछ सकते हैं, क्योंकि खुद की खामियों को स्वीकारनें के लिए बहुत बड़े जिगर की जरुरत होती है, जो सभी में नहीं होता है।  मगर जो खुद की कमियों को स्वीकारतें है, वह ही  उसको दूर करने में सफल भी होतें हैं।

 ज्योति नाम की एक छोटी बच्ची, जिसकी शरारतों से पूरा घर परेशान रहता था, एक दिन खेलते -खेलते गिर गई, जिससे उसकी आँख  में चोट लग गई और उसकी एक आँख की रोशनी चली गई। इलाज होने के बाद उसकी एक  आँख पत्थर के सामान दिखाई  देने लगी।   जब भी वह किसी के सामने जाती थी तो सभी उसको देखकर ,उसका मजाक बनाते थे। वह स्कूल नहीं जाना चाहती थी। माँ पापा के समझाने पर वह स्कूल जाने को तैयार हुई और जब वह स्कूल गई, तो उसको छात्रों द्वारा अपमानित होना पड़ा। कोई उससे दोस्ती नहीं करना चाहता था। बच्चे उसे अपनी सीट पर भी बैठाना नहीं चाहते थे। सभी उसे आधी ज्योति कहकर बुलाते थे।  धीरे -धीरे पढाई में उसकी रूचि ख़त्म होती जा रही थी। 

 एक दिन वह बहुत ही उदास थी। सभी बच्चे क्लास रूम से जा चुके थे, तभी दाई आंटी आई उसने देखा की ज्योति क्लास रूम  में अकेली बैठ कर रो रही है। दाई आंटी ने ज्योति से रोने वजह को पूछा, तो उसने सारी बात बता दी और कहा कि अब वह नहीं पढ़ेगी। दाई आंटी ने ज्योति को समझाया कि  अगर सभी बच्चे तुमसे दोस्ती नहीं करना चाहतें है, तो खुद को ऐसा बना लो कि सारे बच्चे तुमसे दोस्ती करने में गर्व महसूस करें। दाई आंटी की बातों ने जैसे ज्योति के  दिल पर दस्तक करने का काम किया। उसने मन लगा कर पढ़ना शुरू किया।  अब उसे किसी की कही बातें बुरी नहीं लगती थी और मजाक की ओर ध्यान का समय उसके पास था ही नहीं। 

फिर स्कूल में एनुअल फ़ंक्शन का दिन आया। सभी बच्चे हॉल में बैठे थे। तभी सर ने ज्योति का नाम पुकारा और बताया की उसने पूरे स्कूल में टॉप किया है।  सभी बच्चों की आँखे फटीं की फटीं रह गई। फिर सर ने ज्योति को इनाम दिया।  अब जो बच्चे उससे दूर भागते थे, वो उससे दोस्ती करे को बेताब थे। अब उसे स्वयं ही टॉपरों की सीट पर बैठने का स्थान स्वतः ही मिल गया था। अब सभी उसकी तारीफ करते थे। यह सिर्फ उसकी   मेहनत का फल था, जिसको उसने अपनी फिजिकली कमी को देखकर अनदेखा कर दिया था। 

हमारी हालत भी उस ज्योति की तरह ही है। लोगों के सामने  खुद की एक ऐसी छवि बनानी होगी कि  सभी हमसे जुड़ कर गर्व की अनुभूति करें और हमारी अपनी खुद की एक पहचान बने। लोगो की मानसिकता का क्या है ? जब उनको गधा कहो तो नाराज होते है और जब शेर कह कर सम्बोधित करो, तो खुश हो जातें है  जब की दोनों ही जानवरों के ही रूप है। तो बेफिक्र जिंदगी जीना चाहिए।

Image-Google  

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